कैंसर क्या है और इसका आयुर्वेदिक ईलाज क्या है पढ़िए

कैंसर कई रूप में होता है। कैंसर के 100 से अधिक प्रकार होते हैं। अधिकतर कैंसरों के नाम उस अंग या कोशिकाओं के नाम पर रखे जाते हैं जिनमें वे शुरू होते हैं- उदाहरण के लिए, बृहदान्त्र में शुरू होने वाला कैंसर पेट का कैंसर कहा जाता है, कैंसर जो कि त्वचा की बेसल कोशिकाओं में शुरू होता है बेसल सेल कार्सिनोमा कहा जाता है।

कैंसर शब्द ऐसे रोगों के लिए प्रयुक्त किया जाता है जिसमें असामान्य कोशिकाएं बिना किसी नियंत्रण के विभाजित होती हैं और वे अन्य ऊतकों पर आक्रमण करने में सक्षम होती हैं। कैंसर की कोशिकाओं रक्त और लसीका प्रणाली के माध्यम से शरीर के अन्य भागों में फैल सकती हैं।

कैंसर के मुख्य श्रेणियां - 

कार्सिनोमा - ऐसा कैंसर जो कि त्वचा में या उन ऊतकों में उत्पन्न होता है, जो आंतरिक अंगों के स्तर या आवरण बनाते हैं।

सारकोमा - ऐसा कैंसर जो कि हड्डी, उपास्थि, वसा, मांसपेशियों, रक्त वाहिकाओं या अन्य संयोजी ऊतक या सहायक में शुरू होता है।

ल्युकेमिया - कैंसर जो कि रक्त बनाने वाले अस्थि मज्जा जैसे ऊतकों में शुरू होता है और असामान्य रक्त कोशिकाओं की भारी मात्रा में उत्पादन और रक्त में प्रवेश का कारण बनता है।

लिंफोमा और माएलोमा - ऐसा कैंसर जो कि प्रतिरक्षा प्रणाली की कोशिकाओं में शुरू होता है।

केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र के कैंसर - कैंसर जो कि मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के ऊतकों में शुरू होता हैं।

कैंसर की उत्पत्ति -

सभी प्रकार के कैंसर कोशिकाओं में शुरू होते है, जो शरीर में जीवन की बुनियादी इकाई होती हैं। कैंसर को समझने के लिए, यह पता लगाना उपयोगी है कि सामान्य कोशिकाओं के कैंसर कोशिकाओं में परिणत होने पर क्या होता है।

मानव शरीर कई प्रकार की कोशिकाओं से बना होता है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए ये कोशिकाएं वृद्धि करती हैं और नियंत्रित रूप से विभाजित होती हैं। कोशिकाएं जब पुरानी या क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, तो वे मर जाती हैं और उनके स्थान पर नई कोशिकाएं आ जाती हैं।

हालांकि कभी कभी यह व्यवस्थित प्रक्रिया गलत हो जाती है। जब किसी सेल की आनुवंशिक सामग्री (डीएनए) क्षतिग्रस्त हो जाती है या वे बदल जाती हैं, तो उससे उत्परिवर्तन (म्युटेशन) पैदा होता है, जो कि सामान्य कोशिकाओं के विकास और विभाजन को प्रभावित करता है। जब ऐसा होता है, तब कोशिकाएं मरती नहीं, और उसकी बजाए नई कोशिकाएं पैदा होती हैं, जिसकी शरीर को जरूरत नहीं होती। ये अतिरिक्त कोशिकाएं बड़े पैमाने पर ऊतक रूप ग्रहण कर सकती हैं, जो ट्यूमर कहलाता है। हालांकि सभी ट्यूमर कैंसर नहीं होते, ट्यूमर सौम्य या घातक हो सकता हैं।

सौम्य ट्यूमर - ये कैंसर वाले ट्यूमर नहीं होते। अक्सर शरीर से हटाये जा सकते है और ज्यादातर मामलों में, वे फिर वापस नहीं आते। सौम्य ट्यूमर में कोशिकाएं शरीर के अन्य भागों में नहीं फैलते।

घातक ट्यूमर - ये कैंसर वाले ट्यूमर होते हैं, और इन ट्यूमर की कोशिकाएं आसपास के ऊतकों पर आक्रमण कर सकती हैं तथा शरीर के अन्य भागों में फैल सकती हैं। कैंसर के शरीर के एक भाग से दूसरे फेलने के प्रसार को मेटास्टेसिस कहा जाता है।

ल्युकेमिया - यह अस्थिमज्जा और रक्त का कैंसर है इसमें ट्यूमर नहीं बनता है।

कोशिकाओं के विकास और परिवर्तन का कारण -

जैसा कि हम जानते है कि हमारा शरीर 5 तत्वों से बना है जिनमे अग्नि, वायु और जल का विशेष महत्व है। इसी को आयुर्वेद में वात, पित्त और कफ कहा गया है। जब इनका संतुलन बिगड़ जाता है तो हमारे शरीर की सप्त धातु जिनको रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र कहा जाता है यह वात, पित्त और कफ के बिगड़ने से दूषित हो जाती है जिसका सीधा प्रभाव हमारी कोशिकाओं पर पड़ता है और कैंसर जैसे घातक रोग का जन्म होता है।

सप्तधातु किसे कहते हैं -

जिससे शरीर का निर्माण या धारण होता है, इसी कारण से इन्हें 'धातु' कहा जाता है धा अर्थात = धारण करना। हैं -सप्‍त धातुओं का शरीर में बहुत महत्‍व है।

1- रस धातु - यह शरीर की मूल धातु है। सुन्दरता इसी से आती है। रस धातु का निर्माण मुख्य रूप से उस आहार रस के द्वारा होता है, जो जाठराग्रि के द्वारा परिपक्क हुए आहार का परिणाम होता है।

2- रक्‍त धातु - रक्त कोशिकाओं एवं इनके परिसंचरण का नाम रक्त धातु है। सुश्रुतसंहिता और चरक सहिंता के मुताबिक रक्त धातु की कमी होने पर शरीर की त्वचा , रंगहीन, खरखरी, मोटी, फटी हुई एवं कांतिहीन हो जाती है।

3 - मांस धातु - शरीर में सबसे ज्यादा हिस्सा मांस धातु का होता है और यह शरीर की स्थिरता, मजबूती, दृढ़ता और स्थिति के लिए महत्त्वपूर्ण होता है। मांस धातु के द्वारा शरीर के आकार निर्माण में सहायता प्राप्त होती है।

4 - मेद धातु - मेद धातु शरीर में स्त्रेह एवं स्वेद उत्पन्न् करता है, शरीर को दृढ़ता प्रदान करता है तथा शरीर की हड्डियों व अस्थियों को पुष्ट कर ताकत प्रदान करता है।

5 - अस्थि धातु - शरीर में यदि हड्डियां न हों तो सम्पूर्ण शरीर एक लचीला मांस पिण्ड बनकर ही रह जायेगा, शरीर को अस्थियों के द्वारा ही शक्ति, दृढ़ता और आधार प्राप्त होता है। अस्थि पंजर ही शरीर का मजबूत ढाँचा तैयार करता है। जिससे मानव आकृति का निर्माण होता है।

6 - मज्जा धातु - मज्जा शरीर के विभिन्न अवयवों को पोषण प्रदान करती है।यह विशेष रूप से शुक्र धातु (वीर्य) का पोषण, शरीर का स्त्रेहन तथा शरीर में बल सम्पादन का कार्य करता है।

7 - शुक्र धातु - जिस प्रकार दूध में घी और गन्ने में गुड़ व्याप्त रहता है, उसी प्रकार शरीर में शुक्र व्याप्त रहता है।

शुक्र सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त रहता है तथा शरीर को बल, पौरुष, वीर्य प्रदान करता है।

इसके लिए कहा गया है, सप्‍त धातुयें वात आदि दोषों और रोगों से कुपित होंतीं हैं। शरीर में वात, पित्त, कफ में से जिस दोष की कमी या अधिकता होती है, उसके अनुसार सप्‍त धातुयें रोग-बीमारियां अथवा शारीरिक विकृति उत्‍पन्‍न करती हैं। यही कैंसर का मूल कारण है।

वात, पित्त और कफ का बिगड़ने के मूल कारण-

हमारे शरीर मे वात, पित्त और कफ का बिगड़ने का मूल कारण असंतुलित खान - पान और दिनचर्या, जिसका सीधा प्रभाव पाचन तंत्र पर पड़ता है। हमने अपने जीवन मे जितने भी मरीजों को समझा और देखा तो सभी मरीज पहले पेट के रोगी हुए और फिर उन्हें तरह तरह की बीमारी हुई कैंसर का जन्म भी पेट के रोग से ही शुरू होता है। अब सवाल है कि जो बच्चा जन्म से ही या 1 - 2 साल में ही कैंसर रोगी हो गया तो उसका क्या कारण है ? यहाँ हम आपको बताना चाहेंगे कि बच्चे की उत्पत्ति माता और पिता से हुई है तो निश्चित ही बच्चे के माँ या पिता उस समय रोगी रहे होंगे । बच्चे में रोगों की अधिकता माँ के रोग से होती है अतः जब बच्चे की माँ की सप्त धातु और वात, पित्त और कफ बिगड़ा होगा तभी वह दोष बच्चे में कैंसर जैसी बड़ी बीमारी ले कर आ जाता है । यही मूल कारण है कि जन्म से ही बच्चे में कैंसर पाया गया लेकिन ऐसे बहुत कम केस सामने आते है।

क्या है कैंसर का ईलाज-

हमने अधिकतर देखा कि एलोपैथी में कैंसर के ईलाज के लिए बीमारी को ठीक करने का प्रयास किया जाता है जब कि बीमारी का मूल कारण क्या है यह कोई नही जानना चाहता और न ही उसका निदान करते है। यही कारण है कि कैंसर ठीक होने के बाद भी वापस आ जाता है।

आयुर्वेद में मात्र 1 - 2 प्रतिशत ही ऐसे डॉक्टर या वैध है जो कि कैंसर होने का कारण जानने की कोशिश करते है और उस कारण को जानकर ठीक करने का प्रयास करते है और ठीक करते है।

अब सवाल आता है कि अगर आयुर्वेदिक में बीमारी का कारण 

जानकर ईलाज किया जाता है तो कैंसर जैसी बीमारी ठीक क्यों नही होती ?

इसका साफ और स्पष्ट उत्तर यह है कि न तो कोई मरीज आयुर्वेद के अनुसार ईलाज करवाना चाहता है और न ही कोई डॉक्टर या वैध आयुर्वेद के अनुसार ईलाज करना चाहता है क्योंकि सभी को 2 - 4 दिन में ही रिजल्ट चाहिए होता है और वह सिर्फ और सिर्फ एलोपैथी में ही संभव है क्योंकि एलोपेथी ही एक ऐसी पैथी हो जिसमें तुरंत रिजल्ट मिलता है क्योंकि इस पैथी में सीधे बीमारी का ईलाज किया जाता है न कि बीमारी के कारण को ठीक करके बीमारी का ईलाज किया जाता है।

क्या आयुर्वेद चिकित्सा से कैंसर को ठीक किया जा सकता है ?

मेरा उत्तर है हाँ , आयुर्वेद चिकित्सा से कैंसर को पूरी तरह ठीक किया जा सकता है । यदि बीमारी को पूरी तरह से समझकर ईलाज किया जाए तो कैंसर पूरी तरह ठीक हो सकता है।

 

- डॉ ए के मित्तल, आयुर्वेदिक एवं नेचरोपैथी ( कैंसर रोग विशेषज्ञ ) फोन- 9761770770

 

नोट - कैंसर रोगी निःशुल्क परामर्श प्राप्त कर सकते हैं। यदि आप हमारे लेख से और विचार से सहमत है तो तो कृपया शेयर जरूर करें जिससे किसी कैंसर रोगी को ईलाज में मदद मिल सके ।